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वो सुर्ख़ लाल ग़ुलाब ...|

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"ये रहीं ऋतिका की बुक्स और पेंसिल बॉक्स | और कुछ तो नहीं रह गया ?" "टेलर के यहाँ से जो आप कुर्ता पिछले सप्ताह लाने वाले थे ... " "अरे यार स्वाति...सो सॉरी मैं कल पक्का... " "अरे बाबा मैं वो कुर्ता ले आई | डोंट वरि | " "तुम भी ना स्वाति | ऋतिका बेटा, यहाँ आइये और अपना सामान ले जा कर अंदर रखिये | " ऋतिका भागते हुए आई, "थैंक यू पापा | दादी दादी देखो मेरा नया पेंसिल बॉक्स... " कहती हुई दादी के कमरे में वापस चली गई | "जब से माँ आई हैं ये बस उन्ही के कमरे में रहती है न ? " "हाँ, कम से कम मेरा सर नहीं खाती अब दिन भर, सवाल पूछ-पूछ कर | " "हाहाहाहा। ... अरे माँ ! आइये बैठिये न | " "उदय, बेटा  मैंने तुझसे एक गुलाब मंगवाया था वो नहीं लाया तू? " "माँ मैं बिलकुल भूल गया, कल ले आऊंगा | पक्का | वैसे आपको चाहिए क्यों गुलाब का फूल? पूजा के लिए और भी फूल लगे हैं हमारी बालकनी में | " "नहीं पूजा के लिए नहीं बालों में लगाने के लिए | " इतना कहकर माँ वापस अपने कमरे में चली गई