पानी वाले बाबा।

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"बाबा! लगता है आज खुल्ले पैसे नहीं हैं | "

"कोई बात नहीं बिटिया, रहने दो | "

"अरे नहीं बाबा, मैं कल दे दूंगी | "

खुल्ले पैसों के लिए हैंडबैग टटोल ही रही थी कि मेरी बस आ गई और मैं भीड़ के साथ आगे बड़ गई | वह आखिरी दिन था जब मैंने बाबा को उस स्टॉप पर देखा था। 

मैं, इस विशाल नेशनल कैपिटल रीजन की एक छोटी सी कम्पनी की छोटी सी इंजीनियर। ऑफिस पहुँचने के लिए बोटैनिकल गार्डन से बस लेकर ग्रेटर नॉएडा का सफर तय करती थी| इसी बस स्टॉप पर करीब ४ महीने पहले मैंने बाबा को पहली बार देखा था। 

हम सभी धुल धुप से परेशान बस स्टॉप के छोटे से शेड में खुद को छुपकर, बस के इंतज़ार कर रहे थे कि किसी के गाने की आवाज़ आई , "ओर रे ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में ... " 

हम में से कई लोगों ने उस आवाज़ की तरफ ध्यान भी नहीं दिया. पर जब आवाज़ हमारे करीब पहुंची तो मैंने देखा, लगभग  60 साल के एक बुजुर्ग साइकिल पर एक मिटटी का घड़ा रखकर, जिसपर एक गीला बोरा बंधा हुआ था, हमारी तरफ चले आ रहे थे | स्टॉप पर पहुंचकर वे हर व्यक्ति से पूछने लगे कि क्या वे गागर का ठंडा पानी पिएंगे  ? सभी पसीना पौंछते हुए गर्मी और लेट होती बस को कोसते रहे, पर किसी ने भी उस दिन पानी  नहीं लिया। इस मिनरल वॉटर वाली जनरेशन को कहाँ घड़े के पानी की स्वाद। शायद बाबा ने यही सोचा होगा।

पर यह तो बस पहला दिन था। उस दिन के बाद रोज़ बाबा वहां आने लगे। कुछ अलग बात थी उन में , उनके गाने में और उनके पूछने के अंदाज़ में। धीरे धीरे लोग उनसे पानी खरीदकर पीने लगे और उन्हें प्यार से पानी वाले बाबा बुलाने लगे| बाबा हर समय गाना  गाते और मुस्कुराकर लोगों से बात करते | बाबा के जीवन में जैसे २ ही उद्देश्य थे , सभी को मिटटी के घड़े का पानी पिलाना और मुकेश और किशोर के सारे गाने गाना। कभी कोई गुस्से में धुत्कार देता तो अपना गाना गाते हुए आगे बड़ जाते |

मेरे पास हमेशा ही पानी की बोतल होती थी , फिर भी अक्सर बाबा से पानी ले लेती थी |  जादू था उस पानी में, मिटटी के सोंधेपन के साथ थोड़ा सुकून, थोड़ी ख़ुशी मिला देते थे बाबा उसमे |

कुछ ही दिन में वह एक गिलास पानी जैसे मेरी ज़रुरत बन गया। मैं कुछ देर के लिए ही सही उस गिलास को हाँथ में लिए बाबा के गाने के साथ अपनी परेशानियों से कहीं दूर निकल जाती थी। 

कोई बाबा का नाम नहीं जनता था | ना हि यह के वह कहाँ से थे | किसी ने कभी पूछा भी नहीं | मैंने एक बार पूछा था , "बाबा तुम ये पानी क्यों पिलाते फिरते हो सबको?" एक मुस्कान के साथ जवाब आया "पानी क्यों न पिलाऊँ बिटिया ?"  मेरे पास पलटकर देने के लिए कोई तर्क नहीं था। "घर चल जाता है तुम्हारा इस दो रुपया वाले पानी के ग्लास से? " "ऊपर वाला शिकायत का मौका नहीं देता गुड़िया। " बाबा मुस्कुराये और आगे बड़ गए। 

ऊपर वाला शिकायत का मौका किसको नहीं देता? मैंने खुद से पूछा। 

चेहरे पर शिकन तो जैसे उन्हें पसंद ही नहीं थी । किसी की बीवी से लड़ाई हुई हो या बॉस से चिकचिक, बाबा ४ मीठे बोल और गाने की २ लाइन से सबका मूड ठीक कर देते थे।  मैंने उन्हें कई मर्तवा ये जादू करते देखा था। कोई बस स्टॉप पर भिन्नता हुआ आता था पर बस में हँसता मुस्कुराता चढ़ता था। 

बाबा के चेहरे पर हमेशा शांत भाव रहता था जैसे जीवन में कोई  दुःख या दर्द था ही नहीं। पर यह कैसे मुमकिन था। किसका जीवन एक सीधी लकीर सा चल रहा है। किसी का नहीं। फिर बाबा किस दुनिया से आये थे। बाबा एक जादूगर थे और एक पहेली भी। 

बाबा के सरल व्यक्तित्व का असर हम सभी पर पड़ने लगा। हम सभी बाबा से मिलने के लिए उत्सुक रेहते । कुछ लोग तो बाबा के साथ उनका गाना भी गुनगुनाने लगे थे। जहाँ कुछ महीने पहले हम अपने मोबाइल से नज़र उठाकर एक दुसरे की तरफ देखते भी नहीं थे अब एक दुसरे को देखकर मुस्कुराने लगे थे। 

इसी तरह दिन निकलते रहे | फिर एक रोज़ जब बस स्टॉप पहुंची तो बाबा वहाँ नहीं थे |

सभी अचरज में थे। पर कोई नहीं जनता था बाबा क्यों नहीं आये।  शायद बीमार होंगे, मैंने खुद से कहा। जब वह दुसरे दिन भी नहीं दिखे तो सोचा शायद ज्यादा बीमार होंगे | कई बार सोचती थी पता नहीं कहाँ होंगे, कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं | यह भी सोचा कि इतना क्यों सोचना, बंजारे थे, किसी और जगह चले गए होंगे या कोई और काम कर रहे होंगे | क्या किसी और को भी उनकी चिंता हो रही होगी ? क्या किसी अजनबी की फ़िक्र करना गलत है ? शायद मुझे इतना नहीं सोचना चाहिए | पर यह कोई अजनबी नहीं | यह हमारे पानी वाले बाबा थे, जिनके साथ हम हँसते थे गाते थे। जो हमे सिखाते थे कि ढूँढना चाहो तो हर परिस्थितियों में गाने की की वजह ढूँढ़ सकते हो | 

दिन निकलते रहे पर बाबा वहां दोबारा नहीं आये।  २ या ४ दिन में कोई बाबा का ज़िक्र कर देता था पर धीरे धीरे बाबा बस एक याद बन कर रह गए। ज़िंदगी अपनी रफ़्तार से आगे बड़ती रही और बाकी सब के साथ साथ में भी बाबा के बारे में भूलने लगी। बाबा की याद के साथ साथ उनकी सीख भी धुंधली पड़ने लगी | अब कोई बस स्टॉप पर एक दुसरे की तरफ नहीं देखता,ना मुस्कुराता  ना कोई गाना गाता। 

बाबा को गायब हुए ८ महीने हो चुके थे। मैंने अब एक नई कंपनी में काम शुरू कर दिया। जिसके लिए मुझे फरीदाबाद की तरफ सफर करना पड़ता था। 

एक दिन ऑफिस जाते समय बस में बैठे हुए एक जानी पहचानी  आवाज़ पर ध्यान गया |  हड़बड़ाकर सीट से उठी और उस अवाज़ा के श्रोत को ढूंढ़ने लगी | कुछ लोगों को हटाया, कुछ आगे पीछे जाकर देखा तो मेरे स्टॉप से २ स्टॉप पहले  मेरे पानी वाले बाबा अपना वही गाना जा रहे थे | 

मैंने बिना कुछ सोचे अपना बैग लिया और बस से उतर गई | बाबा सड़क की दूसरी तरफ थे | इस पार से उस पार जाने में मैंने न जाने कितने सवाल सोच लिए | "तुम कहाँ चले गए थे बाबा ? कहाँ से हो ? कहाँ रहते हो ? किसी तकलीफ में तो नहीं थे ? मैं कुछ कर सकती हूँ तुम्हारे लिए ? और ना जाने क्या क्या  " इन सभी सवालों की उलझन के साथ मैं खुश भी थी जैसे कोई बिछड़ा दोस्त मिल गया हो। 

आख़िरकार मैं बाबा के  सामने जाकर खड़ी हो गई | मैं उन्हें समय दे रही थी के वो मुझे पहचान ले | पर उन थकी हुई पर मुस्कुराती आँखों के लिए मैं अजनबी की अजनबी बानी रही | बाबा ने कुछ पल मुझे देखा, मुस्कुराये और बोले, "बिटिया पानी पीओगी ?" 

उस पल में मेरी सारी उलझन शांत हो गई | न मुझे किसी बस का हॉर्न सुनाई दे रहा था, ना आस पास के लोगों की बातें | मुझे मेरे सारे सवालों के जवाब मिल गए | शायद जवाबों की जरुरत ख़त्म हो गई | मैं कुछ भी बोलती उससे पहले बाबा ने मुझे एक ग्लास पानी थमा दिया | 

उस पानी में आज भी वही सौंधापन वही सुकून था | मैं मुस्कुराई क्यूंकि मेरे पानी वाले बाबा ठीक थे |

 "बाबा! लगता है आज खुल्ले पैसे नहीं हैं | "

"कोई बात नहीं बिटिया, रहने दो | "

"अरे नहीं बाबा, मैं कल दे दूंगी | " 

इस छोटी सी ज़िन्दगी में ना जाने हम कितने लोगों से मिलते हैं  | कभी कोई सालों के लिए हमसे जुड़ जाता है तो कोई कुछ पलों के लिए। उनमे से कुछ  ज़िन्दगी पर  ऐसी छाप छोड़ जाते हैं, जिसके निशान ताउम्र हमारे व्यक्तित्व  में झलकते  हैं | बाबा मेरे लिए वैसे ही एक शक्श हैं | उनके ४ रूपये मुझपर आज तक उधार हैं | और ये क़र्ज़ में हमेशा अपने ऊपर रखूंगी | इस बात को कई साल बीत गए हैं| मैं ३ शहर बदल चुकी हूँ और बाबा न जाने कितने बस स्टॉप। पर आज भी जब मैं भी परेशान होती हूँ ये ४ रूपये मुझे कोई न कोई गाना और उसे गाने की वज़ह याद दिला दिला देते हैं। 



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