एक आम सी शाम ...!
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हर शाम की तरह एक आम सी शाम है। शर्मा जी , मिश्रा जी , खान साहब और कांट्रेक्टर बाबू अपनी-अपनी बालकनी में चाय लेकर पहुँच चुके थे। अजी ये कोरोना के चलते अब यूँही दूर-दूर से चाय पीने का दस्तूर ही आम दिनचर्या का हिस्सा बन चूका है। साथ बैठकर चाय पिए तो शायद आरसे बीत गए हैं।
पर जब आप इस कहानी को पड़ें तो याद रखें, यह हमारे छोटे शहरों के अपार्टमेंट नहीं, जहाँ फ्लैट के अंदर ही फोर व्हीलर पार्किंग और गार्डन भी होता है । यह मुंबई के अपार्टमेंट हैं, यहाँ अपने-अपने घरों में रहकर भी आराम से बात हो सकती है। आमने-सामने के फ्लैट में दूरी कितनी ? बस २ गज़। तभी मोदी जी ने २ गज़ दूरी तय की है सोशल डिस्टैन्सिंग के लिए , वरना मुम्बइकर्स को एक फ्लैट छोड़ एक में शिफ्ट होना पड़ता।
खैर, आम तौर पर रोज़ चाय पर चर्चा शुरू करने वाले शर्मा जी आज ज़रा चुप हैं ।
"क्या हुआ शर्मा जी ? ये बिना मुद्दे के विपक्ष जैसी शक्ल क्यूँ बनाई हुई है ?" उनके बगल वाले फ्लैट में रहने वाले मिश्रा जी ने पूछा।
"परसों जो आपसे चाय का कप टूटा था, वो पता चल गया क्या भाभी जी को? " मिश्रा जी के सामने रहने वाले खान साहब मज़े लेते हुए बोले।
शर्मा जी : "अरे खान साहब ज़रा धीरे बोलिये। आपकी भाभी जी ने सुन लिया तो अभी बाज़ार भेज देगी मुझे कप का नया सेट लेने। वो तो मिलेगा नहीं, सूजा हुआ कूल्हा लेकर वापस आना पड़ेगा। "
खान साहब : "तो फिर हुआ क्या आपको ?"
शर्मा जी : "अब क्या बताऊँ। "
"बता दीजिये शर्मा जी, अगर राहुल गाँधी के सत्ता सँभालने का इंतज़ार करेंगे तो आपकी बात और चिंता आपके साथ स्वर्ग प्रस्थान कर लेगी। " शर्मा जी के ठीक सामने वाले फ्लैट में कुछ दिन के लिए रहने आये कांट्रेक्टर बाबू ने अपने अफ़सर वाले लहज़े में कहा।
कांट्रेक्टर साहब कुछ बड़े सरकारी काम से ३ महीनो के लिए शहर में आये थे और यही फस कर रह गए। अपनी माना स्थिति का ज्यादा वखान नहीं करते कभी, पर बाकी तीनो के लिए कांट्रेक्टर बाबू अपनी ज़िन्दगी के स्वर्णिम दिनों को जी रहे हैं (बीबी की खिटफिट से दूर ) ।
शर्मा जी : "अरे कांट्रेक्टर साहब हम इसी चिंता में हैं के मरणोपरांत स्वर्ग मिलेगा भी या नहीं। "
खान साहब : "अमा मियाँ तुमने ऐसा कौन सा काम कर दिया के वो खुदा तुम्हे दोजख़ में तलने भुनने भेजेगा ?"
शर्मा जी: "पर ऐसा कुछ भी तो नहीं किया खान साहब के स्वर्ग में अप्सरों का नर्त्य देखने भेज दिया जाए। "
मिश्रा जी: "पर शर्मा जी जहाँ कल तक चिंता इस बात की थी, कि यदि चाय में डालने वाली चीनी ख़त्म हो गई तो वो मिलेगी या नहीं, वहां आज अचानक ये स्वर्ग और नर्क कहाँ से विषय बन गए आपकी चिंता के ?"
शर्मा जी: "जी सब दूरदर्शन की वजह से। "
तीनो उनका जवाब सुनकर पहले तो आश्चर्यचकित रह गए और फिर ठहाका देकर खूब हँसे।
शर्मा जी: "अजी हसने की बात नहीं है। कलयुग के दौर में, मैं तो भूल ही गया था के स्वर्ग भी बनाया है ईश्वर ने। ये न्यूज़ चैनल्स के एंकरस ने तो भरोसा दिला दिया था के दुनिया में सिर्फ गलत ही काम हो रहे हैं। इसलिए शायद स्वर्ग का कांसेप्ट ही भगवान् ने अगले सतयुग तक के लिए ससपेंड कर दिया होगा। "
कांट्रेक्टर साहब : "अरे नहीं शर्मा जी, यह तो हमारे देश का आरक्छण सिस्टम जैसा है। एक बार स्थापित हो गया तो युगों-युगों का चलता जायेगा । पर आज अचानक क्या हुआ के आपको अपने जीवन बीमा की चिंता होने लगी?"
शर्मा जी: "जीवन बीमा तो फिर भी हमारे लिए नहीं घर वालों के लिए होता है। पर यह चिंता तो मुझे और आपको अपने खुद के लिए करनी चाहिए। और ये अचानक नहीं हुआ कांट्रेक्टर बाबू , हमारी संस्कृति हमे हमेशा आगाह करती आई है , पर ये कलयुग के प्रकोप ने सब भुला दिया। और अब जब आधे पैर कब्र में हैं तो चिंता खाये जा रही है मुझे तो। और रहा आप लोगों का सवाल के आज अचानक क्यों, तो जवाब है दूरदर्शन। "
अपने पड़ोसियों की भोचकक्ता को परखते हुए शर्मा जी आगे बोले, "इसी दूरदर्शन ने रामायण और महाभारत दिखा कर यह साबित कर दिया के अब तो हम नरक में ही जाने वाले हैं। "
मिश्रा जी: "शर्मा जी आप जाएँ नरक में अकेले , हमारी कार पूलिंग की बात सिर्फ ऑफिस साथ जाने की हुई थी। "
खान साहब : "आप भी मज़ाक शुरू कर दिए मिश्रा जी। शर्मा जी बात गलत नहीं बोल रहे हैं। काम तो हमने भी कुछ ऐसे करे नहीं के खुदा हमे ज़न्नत बक्से। पर अब किया क्या जाए? "
शर्मा जी : "खान साहब कर्म करना होगा।"
तीनो एक साथ : "कर्म ?"
शर्मा जी : "जी ! पर सिर्फ कर्म नहीं एक ख़ास तरह का कर्म। अब गौर से सुनिए। त्रेता में श्री राम ने वनवास करा, रावण को मारा, तो कर्म करा और संसार का भला हुआ। द्रोपर में तो पांडवों ने क्या-क्या नहीं सहा और कर्म के चक्कर में अपने खानदान से लड़े और ख़त्म कर दिया सबको। खान साहब आपके फ़ीर पैगम्बरों ने ख़ुदा का सन्देश अपने बन्दों तक पहुँचाया ताकि उन्हें सही रास्ता मिले और इसी रास्ते में चलते हुआ ना जाने क्या-क्या कष्ट सहे। कुछ समझ आया ? "
मिश्रा जी : "आपका मतलब है कि कर्म करना होगा जिसमे हमे थोड़ा कष्ट मिले और दूसरों का भला हो ?"
शर्मा जी : "एकदम सही । १०० टका। पर करा क्या जाए ? "
कांट्रेक्टर साहब : "कर्म भी कलयुग के हिसाब का, साधारण नहीं उच्च कोटि का। और ऐसा जो स्वर्ग की एंट्री लिस्ट में हमे ऊपर ले आये। "
तीनो ने कांट्रेक्टर साहब की तरफ आश्चर्य से देखा , "अरे अब जनसँख्या बड़ गई है। स्वर्ग में भी लिमिटेड एंट्री मिलेगी न भाई। "
जवाब सुनकर तीनो ने सहमति दी।
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मिश्रा जी : "तो शर्मा जी घर पहुंचकर क्या बोलना है ?"
शर्मा जी : "यही के कर्म करके आ रहे हैं। "
कांट्रेक्टर साहब : "और ये जगह-जगह की सूजन के लिए ? दवा लगवानी है तो बताना तो पड़ेगा। मैं तो अकेला फस गया। अब सूजे हाँथ से क्या दवा लगाऊंगा और क्या खाना बनाऊंगा। "
मिश्रा जी : "मुझे तो लगा था उठक बैठक कराएँगे या फूल माला पहनाकर हमारी आरती उतरेंगे। ये तो डंडों से पूजा हो गई। "
खान साहब : "पर हमने जो आज करा क्या उससे हमे ज़न्नत नसीब हो जाएगी ?"
शर्मा जी : "नहीं खान साहब, बस जितने लोगों तक हमने कोका कोला पहुँचाया है उतने नंबर जुड़ जायेंगे अच्छे काम के। वो तो आखिर में चित्रगुप्त जी टोटल करके बताएँगे के कहाँ जाना है। इसलिए बस ऐसे काम करते रहना पड़ेंगे। "
मिश्रा जी : "मतलब अभी और मार खाना पड़ेगी ?"
शर्मा जी : "नहीं नहीं लॉकडाउन तक हमारा कर्म घर पर रहना ही है, वो भी कम कष्टदाई तो नहीं। बाकी नंबर लॉकडाउन के बाद जोड़ लेंगे अकाउंट में। "
कांट्रेक्टर शाहब : "चलो इस पूरे वाकये में एक चीज़ बहुत अच्छी हो गई, हमारे साथ साथ उन पुलिस वालों को भी स्वर्ग के लिए नंबर मिल गए। "
तीनो ने अपने दर्द भरे चेहरे कांट्रेक्टर बाबू की तरफ घुमाये "अरे भाई हम अपना कर्म करने निकले थे और उन्होंने अपना कर्म भी कर लिया। "
चरों ठहाका मरते हुए अपने अपने घरों की तरफ बड़ गए।
-आयुषी खरे
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