बचपन की पोटरी: किस्सा पहले ऑपरेशन का ...!

"मम्मी दर्द तो नहीं होगा ना ? पापा-पापा दर्द तो नहीं होगा ना ?"

10th के एक्साम्स के बाद मेरी एक छोटी सी सर्जरी होनी थी जिसके लिए मैं, मम्मी और पापा हॉस्पिटल आये थे। हॉस्पिटल वही सरकारी वाला। एक छोटे से शहर के छोटे से सरकारी हॉस्पिटल से, वो भी 2007 में आप क्या ही उम्मीद करेंगे। कहाँ OPD कहाँ ICU कहाँ Emergency कुछ नहीं पता। सारे पेशेंट्स एक ही हाल में बस अपने नाम बोले जाने का इंतज़ार कर रहे थे। 

क्यूंकि ये मेरी पहली सर्जरी थी (इसके बाद कई मौके दिए ऊपर वाले ने OT में जाने के ), मैं बहुत बुरी तरह से डरी हुई थी। हालत एकदम कसाई के बकरे जैसी थी। पता है कटने वाला है फिर भी भाग नहीं सकता। मैंने उस दिन दूध वाले भैया से , काम वाली आंटी से , नर्स से और बगल में बैठी एक बूढ़ी दादी से ये पूछकर कन्फर्म कर लिया था के दर्द नहीं होगा। पर फिर भी हर १० मिनट् बाद मेरा अलार्म बज जाता और मैं "मम्मी दर्द तो नहीं होगा ना ? पापा दर्द तो नहीं होगा ना ?" शुरू हो जाती। 

इंतज़ार करते करते हमे करीब 40 मिनट हो चुके थे और मेरा अलाप वापस शुरू होने ही वाला था कि अचानक हॉल में हल-चल बड़ गई। कुछ लोग बहुत तेज़ी में एक बच्चे को लेकर अंदर आये। करीब 5 साल का होगा। उसको उसकी माँ ने एक गंदे से कपडे में लपेट रखा था। पापा ने धीरे से मेरी आँखों पर हाँथ रख दिया, पर उनकी उँगलियों की आड़ भी उस बच्चे का खून से सना हुआ शरीर छुपा नहीं पाया। मेरे दिमाग में उस समय सिर्फ और सिर्फ यही घूम रहा था के उसे दर्द तो नहीं हो रहा होगा न। पर उससे पूछ नहीं सकी। 

कुछ ही देर में डॉक्टर आये और उसे ऑपरेशन थिएटर में ले गए। खुद को थोड़ा संभाला तो देखा उस हॉल में सभी उस बच्चे की कंडीशन देखकर उदास हो गए थे। ये उदासी सारे हाल को बस पूरी तरफ से भरने वाली ही थी कि एक 3 साल की प्यारी सी बच्ची मेरे बगल में बैठी दादी के पास भाग कर आई। उसकी पायलों की आवाज़ ने हर किसी का ध्यान तुरंत उसकी तरफ कर दिया। 

अपनी दादी से लिपट कर बोली , "दादी चलो मम्मी भैया को लेकर आ रही है। "

५ मिनट बाद ही उनकी बहु-बेटा उस बच्ची के छोटे भाई को लेकर हाल में आ गए। चूँकि वो करीब १ घण्टे से हमारे बगल में बैठी थी इसलिए हमे उनके घर के बारे वो सारी बातें जानते थे जो एक महिला एक घण्टे में बता सकती हैं । कहीं न कहीं हमे लगने लगा वे हमारे परिचित हैं, इसलिए मम्मी पापा खड़े होकर उनसे कुछ बात करने लगे और आशीर्वाद देने लगे। 

मैं अपनी जगह पर चुप बैठी ये सब देखकर ही खुश थी , पर मेरा मन उस बच्ची की तरफ यहाँ वहां उछल रहा था। मैं भी उसके छोटे भाई को अपनी गोद में लेना चाहती थी, उसे खिलाना चाहती थी के तभी नर्स ने मेरा नाम लिया , "आयुषी खरे "

मेरा सारा डर जो दूसरों की ख़ुशी और गम के रोलर कोस्टर में पीछे छुप गया था, दौड़ा वापस आ गया। कुछ कर तो सकती नहीं थी तो सोचा सबसे फिर से कन्फर्मेशन ले लेती हूँ।

"मम्मी दर्द तो नहीं होगा ना ? पापा दर्द तो नहीं होगा ना ? मां दर्द हुआ तो मैं भागकर वापस आ जाउंगी। नर्स दर्द तो नहीं होगा न ? डॉक्टर पहले प्रॉमिस करिये के दर्द नहीं होगा। "

P.S. दर्द नहीं हुआ था। पर फिर भी मैं पूरे समय ऐसे चीख रही थी के डॉक्टर्स ने मुझे जितनी जल्दी हो सका OT से बहार कर दिया। और मैंने सबको बताया के ऑपरेशन में दर्द नहीं होता, फिर भी कमज़ोर दिल वालों के बस की बात नहीं, वो तो मैं थी जो ज्यादा डरी नहीं। 


Comments

Popular posts from this blog

Journey With A Cute Guy...!!!

Khajuraho: A small town with international fame.

An Untold Story